रानियाँ सब जानती हैं

By नंदा वर्तिका

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available

Original Title

रानियाँ सब जानती हैं

Subject & College

Series

Publish Date

2015-01-01

Published Year

2015

Publisher, Place

ISBN 13

978-93-2572-976-2

Format

Paperback

Country

India

Language

Hindi

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रानियाँ सब जानती हैं

डॉ वर्तिका नंदा की लिखी किताब 'रानियाँ सब जानती हैं' उस अंधेरे की ओर लेज़र लाइट की सी रोशनी छोड़ती है जहां किसी का पहुंचना...Read More

Jadhav Rutuja Shivaji

Jadhav Rutuja Shivaji

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रानियाँ सब जानती हैं
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डॉ वर्तिका नंदा की लिखी किताब ‘रानियाँ सब जानती हैं’ उस अंधेरे की ओर लेज़र लाइट की सी रोशनी छोड़ती है जहां किसी का पहुंचना तो दूर, किसी की सोच तक नहीं जाती। वह कोना है- किसी भी औरत का मन।

किताब के कवर पेज से लेकर आखिरी कविता तक यह किताब स्त्री मन के अथाह सागर का मंथन करती है। हर कविता पढ़ने के बाद आँखें स्वतः ही बंद हो जाती हैं और अंदर ही अंदर हर महिला उस कविता के केंद्र में खुद को पाती है। किसी भी कविता की पात्र कोई विशेष महिला नहीं है बल्कि हर स्त्री मन का मौन अंतस है। मर्म यह है कि महल में रहने वाली रानी हो, आम जीवन जीने वाली कोई भी महिला या फिर जेल में बंद कोई औरत, हर स्त्री किसी न किसी अमरबेल की जकड़न में है।
किताब के शुरुआती शब्द औरत के इर्द-गिर्द अभेद चक्रव्यूह की बानगी हैं…

“याचक बनाते महिला आयोग,
उखड़ी सांसों की पुलिस की महिला अपराध शाखाओं,
ढुलमुल कचहरियों
और
बार-बार अपराध कर
गोल चबूतरे से थपकियां पाते
तमाम अपराधियों के लिए
जिन्हें जानकर भी चुप रहीं
रानियां I”

यह कविताएं उंगली नहीं उठाती, कटाक्ष नहीं करती, उपदेश नहीं देतीं, औरत की बेचारगी और मायूसी को नहीं कहतीं बल्कि बड़े ही सहज परंतु सटीक तरीके से स्त्री मन के उद्गार प्रकट करती हैं। इन कविताओं में प्रार्थनाएं हैं, सादर,उत्सव , पानी , बादल,परी,सुर हैं। कुल मिलाकर लेखिका का मकसद है” सिसकियों को लाल धागे में बांधकर खिलखिलाहट में बदल देना है ताकि दुख की सुरंग सुख के खलिहान में खुले”
(रानियाँ सब जानती हैं पृष्ठ सं-10)
रानियाँ सब जानती हैं स्त्री अंतर्मन का दर्पण है ,इसमें हर महिला को अपना अक्स दिखता है। हर औरत अपने अंदर के पूरे सच को कभी बाहर नहीं ला पाती, मौके पर सच बोल नहीं पाती,और तो और सच सामने हो तो भी कह नहीं पाती ।
लेखिका ने प्रतीकात्मक तौर पर महलों की बात कही है जहां राजा की पत्नी होने के नाते औरत रानी के रूप में विराजती है। वो रियासत की रानी है ,उसका हुक्म चलता है , लेकिन राजा के हरम का अस्तित्व इस बात को झूठा साबित नहीं करता की रानी के अशांत मन में कुलबुलाहट है। हरम में मौजूद सैकड़ों औरतों के साथ अपने पति का बंटवारा रियासत की रानी को किस श्रेणी में खड़ा कर देता होगा । वो रानी थी। पर कुछ ही दिनों में राजा को महल में एक नई रानी की दरकार हुई। रानी खुद ही महल से बाहर चली जाती तो आसानी होती पर ऐसा हुआ नहीं। तब राजा ने शतरंज की बिसात बिछाई। सिपहसालार जमा किये। राजा महल में लाना चाहता था —नयी रानी। इसलिए जो रानी मौजूद थी ,उस पर लगाये जाने लगे आरोप– महल पर कब्ज़े, बदमिज़ाजी और संस्कार विहीन होने के………. रानी चुप रही। बड़ी दीवारों ने सोख लीं सिसकियां। दीवारों को आदत थी। उधर पिछले दरवाजे से नयी रानी आ भी गयी।
(रानियाँ सब जानती हैं ,संपादकीय)
अतीत में झांकें तो रियासतों और राजवाड़ों का इतिहास ऐसी कथाओं के साथ पटा पड़ा है।

“हरम के अंदर हरम
हरम के अंदर हरम
तालों में
सीखचों में
पहरे में
हवा तक बाहर ठहरती है
और सुख भी
रानियाँ सब जानती हैं
पर मुस्कुराती हैं I”
(रानियाँ सब जानती हैं पृष्ठ सं-33)

इतिहास में दर्ज़ तथ्यों के अनुसार- महारानी से शुरू कहानी, रानी,पटरानी से गुज़रते हरम तक जा पहुंचती है जहाँ क़ैद सैकड़ों औरतों के पास तमाम सच हैं लेकिन ज़ुबान पर चुप्पी चस्पा है ।

“ चुप्पी
इतिहास की इज़्ज़त
वर्तमान के षडयंत्रों के चक्रव्यूह
और भविष्य की संभावित उतरनों के बलात्कार को
रोके रखती है

देश और घर
इसी चुप्पी के भरोसे
भरते हैं
सांस ।“
(रानियाँ सब जानती हैं पृष्ठ सं-25)
ऐतिहासिक गाथाएं साक्षी हैं कि औरत का जीवन किसी भी युग में सरल नहीं रहा। सीता,कौशल्या , अहिल्या, द्रौपदी, उर्मिला, यशोधरा, देवकी, रुक्मिणी, ऐसी तमाम औरतें इतिहास में दर्ज़ हैं जिनकी चुप्पी कई रहस्यों को रसातल में दबा गयी। औरत को दूसरे दर्ज़े पर रखा जाना पुरुष प्रधान समाज की सबसे बड़ी त्रासदी है । संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार हर तीसरी महिला किसी न किसी हिंसा की शिकार हुई है ।
(रानियाँ सब जानती हैं , अपमान-अपराध-प्रार्थना-चुप्पी…)

हिंसा के खरोंचें तन पर कम और मन पर ज़्यादा लगती हैं। तन के घाव तो भर जाते हैं पर मन के घाव नासूर की तरह रिसते हैं। इनकी कसक जीते जी तो नहीं ही जाती। ये टीस न सही जाती हैं और न कही ।

खुद मरी या मारी गई, तेजाबी हमले की शिकार हुई ,बलात्कार, झूठ, फरेब, छल, कपट की शिकार हुई महिला की चीखों का मौन स्वर है ‘रानियाँ सब जानती हैं। इस किताब में लेखिका ने हर महिला को रानी का दर्ज़ा दिया है जो वास्तव सही है। खुद प्रकृति ने जिसको सृष्टिसृजक होने के सच से नवाज़ा है वो रानी ही है। पर त्रासदी है कि हर सच की चाबी को राजा ने अपने अधिकार क्षेत्र में रख लिया है ।
रानियां सब जानती हैं किताब की लेखिका डॉ वर्तिका नंदा जेल सुधारक और मीडिया शिक्षिका हैं। जेलों में बंद महिलाओं के अधरों पर चिपकी चुप्पी को समझना और उसे तोड़ पाना लोहे के चने चबाने सा है। इस दुरूह कार्य को वो जेल पर लिखी गयी अपनी किताब “तिनका तिनका तिहाड़” में अंजाम दे चुकी हैं। जेलों में सज़ा काट रही महिलाओं की मन:स्थिति का अध्ययन बड़े ही बारीकी से करने के बाद का निष्कर्ष हर आम और ख़ास औरत के साथ जा के जुड़ जाता है।
रानियाँ सब जानती किताब उद्वेलित नहीं करती बल्कि इसकी कविताएं सोच को मुखर करती हैं। ये कविताएं अपराध अपमान प्रार्थना और चुप्पी इन चार संवेगों के इर्द-गिर्द हैं। अपराध एक तीव्र संवेग है अचानक जो भयवाह स्थिति उत्पन्न करता है। अपराधी पर समाज और कानून के तीक्ष्ण कटाक्ष होते हैं लेकिन अपराधी के अंतस में बने भावात्मक नासूर पर कोई बात नहीं होती, उस किसी की नज़र नहीं ही जाती । ऐसे तमाम वाक्यात से लेखिका ने स्त्री मन को खोलने का सफल प्रयास किया है, साथ ही “थी, हूँ, और हमेशा रहूंगी” ये मंत्र भी गढ़ कर हर स्त्री के लिए सहेज दिया है ।
“हाँ, मैं थी. हूँ… और हमेशा रहूंगी”
यह मंत्र दम्भ नहीं बल्कि विचारात्मक दृढ़ता है, यह मंत्र तपता सूरज नहीं बल्कि गहन अंधकार में जलती मशाल है, यह मंत्र अपने अस्तित्व की लड़ाई नहीं बल्कि खुद के पुनर्स्थापन की कला है ।

ज़ुबा बंद है
पलकें भीगी
सच मुट्ठी में
पढ़ा आसमान ने
मैं अपने पंख खुद बनूँगी
(रानियाँ सब जानती हैं पुस्तक में पहली कविता )

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