कामायनी

By जयशंकर प्रसाद

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Original Title

कामायनी

Publish Date

2005-01-01

Published Year

2005

Total Pages

114

ISBN

81-86408-00-2

Country

INDIA

Language

हिंदी

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कामायनी

कामायनी - जयशंकर प्रसाद ‘कामायनी’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित छायावादी युग का सर्वोत्तम और प्रतिनिधि हिंदी महाकाव्य है। इसे छायावाद का ‘उपनिषद’ भी कहा जाता...Read More

Gawande Santosh Devram

Gawande Santosh Devram

January 22, 2025
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कामायनी
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कामायनी
– जयशंकर प्रसाद
‘कामायनी’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित छायावादी युग का सर्वोत्तम और प्रतिनिधि हिंदी महाकाव्य है। इसे छायावाद का ‘उपनिषद’ भी कहा जाता है। ‘प्रसाद’ जी की यह अंतिम काव्य रचना १९३६ ई. में प्रकाशित हुई। इसकी भाषा साहित्यिक खड़ी बोली और छंद तोटक है। ‘चिंता’ सर्ग से लेकर ‘आनन्द’ सर्ग तक १५ सर्गों के इस महाकाव्य में मानव मन की विविध अंतवृत्तियों का क्रमिक उन्मीलन इस कौशल से किया गया है कि मानव सृष्टि के आदि से अब तक के जीवन के मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास का इतिहास भी स्पष्ट हो जाता है।
जल-प्रलय में देवसृष्टि नष्ट हो गई,मनु शेष बच गए। मनु ने हिमालय की एक निर्जन गुफा में अपना निवास बनाया। गांधार देश की युवती श्रद्धा ललित कलाओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए हिमालय के प्राकृतिक सौन्दर्य का अवलोकन करती हुई घूम रही थी तभी उसे गुफा के समीप मनु चिन्तित मुद्रा में बैठे दिखाई दिए। श्रद्धा मनु से उनका परिचय पूछने लगी। श्रद्धा की मधुर वाणी सुनकर जब मनु ने अपनी दृष्टि ऊपर उठाई तो उन्हें अपने समक्ष एक अपूर्व सुन्दरी नवयुवती खड़ी दिखाई दी। प्रसाद जी ने यहां श्रद्धा के सौन्दर्य का छायावादी शैली में प्रभावपूर्ण चित्रण किया है। मनु ने अपनी निराश, असहाय स्थिति के बारे में श्रद्धा को बताया और कहा मेरी जीवन पहेली के समान उलझा हुआ है। श्रद्धा ने उन्हें दार्शनिक रूप में समझाते हुए कहा कि तुम जीवन की जटिलताओं से घबराकर मंगलमय काम शक्ति की उपेक्षा कर रहे हो जो उचित नहीं है। वह महाचिति इस संसार में पांच प्रकार की लीलाएं करती हुई आनन्द का अनुभव कर रही है। अतः सृष्टि और प्रलय को उसकी लीला समझकर तुम्हें सामान्य रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए। दुःख-सुख का चक्र जीवन में चलता रहता है। मनु ने कहा कि आपकी वाणी से मेरे मन में उत्साह का संचार तो हुआ है, किन्तु जीवन का अन्तिम परिणाम निराशा ही है। श्रद्धा ने कहा कि देवसृष्टि नष्ट हो गई है। अब हम दोनों को मिलकर नवीन मानव सृष्टि का विकास करना है अतः मैं अपने हृदय के समस्त कोमल भाव आपको समर्पित करती हूं और यह मंगल कामना करती हूं कि आपकी मानव सृष्टि पृथ्वी पर पूर्ण सफलता प्राप्त करे।
प्रसाद जी ने इस काव्य के प्रधान पात्र ‘मनु’ और कामपुत्री कामायनी ‘श्रद्धा’ को ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में माना है, साथ ही जलप्लावन की घटना को भी एक ऐतिहासिक तथ्य स्वीकार किया है। शतपथ ब्राह्मण के प्रथम कांड के आठवें अध्याय से जलप्लावन संबंधी उल्लेखों का संकलन कर प्रसाद ने इस काव्य का कथानक निर्मित किया है, साथ ही उपनिषद् और पुराणों में मनु और श्रद्धा का जो रूपक दिया गया है, उन्होंने उसे भी अस्वीकार नहीं किया, वरन् कथानक को ऐसा स्वरूप प्रदान किया जिसमें मनु, श्रद्धा और इड़ा के रूपक की भी संगति भली भाँति बैठ जाए। परंतु सुक्ष्म सृष्टि से देखने पर जान पड़ता है कि इन चरित्रों के रूपक का निर्वाह ही अधिक सुंदर और सुसंयत रूप में हुआ, ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में वे पूर्णतः एकांगी और व्यक्तित्वहीन हो गए हैं।
कला की दृष्टि से कामायनी, छायावादी काव्यकला का सर्वोत्तम प्रतीक माना जा सकता है। चित्तवृत्तियों का कथानक के पात्र के रूप में अवतरण इस महाकाव्य की अन्यतम विशेषता है। और इस दृष्टि से लज्जा, सौंदर्य, श्रद्धा और इड़ा का मानव रूप में अवतरण हिंदी साहित्य की अनुपम निथि है। कामायनी प्रत्यभिज्ञा दर्शन पर आधारित है। साथ ही इस पर अरविन्द दर्शन और गांधी दर्शन का भी प्रभाव यत्र तत्र मिल जाता है।

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