महाराष्ट्र साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत उपन्यास कांच के शामियाने के बाद लेखिका रश्मि रविजा की
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महाराष्ट्र साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत उपन्यास कांच के
शामियाने के बाद लेखिका रश्मि रविजा की अगली किताब है
बंद दरवाज़ों का शहर । यह लेखिका का प्रथम कहानी संग्रह है.
वही सहज-सरल भाषा का प्रवाह, जाने-पहचाने से किरदार,
रोज़मर्रा का जीवन और जीवन में घटित होनेवाली छोटी-छोटी
घटनाएं ऊंगली पकड़ कर आपको कहीं बहा लेजातीहैं।
कहानी ‘चुभन टूटते सपनों के किर्चों की’ में आज के
आधुनिक समाज की बिन्दास लड़की सिम्मी का अपने प्यार के
प्रति बदला रुख़ न सिर्फ़ उसकी बड़ी बहन को, बल्कि पाठकों
को भी चौंका देता है । ‘अनकहा सच’ पढ़ते हुए शालिनी और
मानस से प्रेम हो जाता है । पाठक दोनों पात्रों के साथ-साथ
जैसे दौड़ने लगता है, इस उम्मीद में कि अब शायद… कहानी
का अंत एक प्यारा-सा ‘काश!’ छोड़ जाता है. ‘पराग….तुम भी’
पढ़ते हुए तसल्ली होती है, कि पल्लवी शायद ख़ुद को ‘कांच के
शामियाने’ की जया होने से बचा लेगी । ‘दुष्चक्र’ हर मां-बाप
को सतर्क कर जाती है, ताकि स्थितियां कभी उनके घर के
साहिल को अपनी चपेट में न लेने पाए. ‘अनजानी राह’ का
अनिमेष जब अंकिता के आग्रह पर देखता हूं कहने के बाद अपने
बॉस को फ़ोन घुमाता है, तो पाठक के चेहरे पर मुस्कान तै । र
जाती है कहानी ‘बंद दरवाज़ों का शहर’ आपसे सवाल करती है
कि क्या नीलिमा ग़लत है? और ज़ाहिर-सी बात है कि जवाब
में सबके अलग-अलग मत होंगे । कहानी ‘कश्मकश’ एक
अजीब-सी उलझन छोड़ जाती है कि कैसे घरवालों का
सौहार्दपूर्ण व्यवहार भी कभी-कभी मन की बेचैनी को और बढ़ा
देता है । वहीं ‘ख़ामोश इल्तिज़ा’ दूध का जला छांछ भी फूंक-
फूंक कर पीता है वाली कहावत को चरितार्थ करता हुआ प्रतीत
होती है. एक बार को तन्वी और सचिन के बीच मध्यस्थता
करने का मन हो आता है. ‘पहचान तो थी…पहचाना नहीं’ ये
कह जाती है की अगर जीवन के इस मोड़ पर अंजु नमिता से
मिली न होती तो शायद ख़ुशियों का असली अर्थ समझ ही न
पाती । ‘होठों से आंखों तक का सफ़र’ में भाभी जी की
खिलखिलाहट मन को सुकून दे जाती है । ‘दुःख सबके
मश्तरक, पर हौसले जुदा’ में लक्ष्मी की हिम्मत के साथ-साथ
शोभा । और अनुष्का का उसके जीवन में होना अच्छाई की
मौजूदगी पर मुहर लगा जाता है संग्रह की आख़िरी कहानी
‘बदलता वक़्त’ पढ़ते हुए ये महसूस होता है कि लेखिका ने
रत्नेश शर्मा
सुप्रसिद्ध साहित्यकार सूर्यबाला जी ने इस संग्रह के बारे में
लिखते हुए जहां कहानियों की अकृत्रिमताओं पर अपनी मुहर
लगाई है, वहीं रश्मि की भाषा के सादगी भरे सम्मोहन को
अपना आशीष देकर संग्रह के प्रति पाठकों के मन में कहानियों
को पढ़ने की उत्सुकता है।
कुल मिलाकर रश्मि के दिल से निकली कहानियां सीधे-सीधे
पाठकों के दिल तक पहुंचती हैं । संग्रह पढ़ते हुए आप गांव-
क़स्बों से लेकर शहरों तक का सफ़र कर आते हैं । एक-दो
कहानियों को थोड़ा और छोटा किया जा सकता था । कहीं-कहीं
प्रूफ़ की ग़लतियां खटकती हैं, पर कथ्य आपको ख़ुद से बांधे
रखता है । कहानियां पढ़ते हुए कहानी के पात्र बार-बार
आपको अपने आसपास के किसी न किसी पात्र की याद दिला
जाएंगे, और कई कहानियों में आपकी ख़ुद की उपस्थिति भी
आपको हैरान कर देगी
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