अंधा युग
By Dharmaveer Bharati
Book Reviewed by Geeta Premji Parmar, Assistant Professor, MVP’s KSKW, Arts, Science & Commerce, College, Nashik.
अंधा युग एक प्रसिद्ध हिंदी नाटक है, जो 1954 में प्रकाशित हुआ। यह महाभारत के अंतिम दिनों की पृष्ठभूमि पर आधारित है और युद्ध के बाद के नैतिक और आध्यात्मिक पतन को दर्शाता है। यह भारतीय पौराणिक साहित्य का आधुनिक व्याख्यान है।
यह पुस्तक अपनी गहरी दार्शनिकता और सांस्कृतिक प्रतीकों के कारण आकर्षित करती है। महाभारत के चरित्रों के माध्यम से समकालीन समाज की जटिलताओं को समझने का प्रयास किया गया है।
अंधा युग महाभारत के युद्ध के अंतिम दिन पर केंद्रित है, जब कौरवों की पराजय हो चुकी है। धृतराष्ट्र, गांधारी, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और विदुर जैसे पात्रों के माध्यम से नैतिक पतन, अंधत्व और प्रतिशोध की भावना को दर्शाया गया है।विषय: नैतिक पतन, युद्ध के बाद की हानि, अंध विश्वास, प्रतिशोध और आध्यात्मिक अंधकार।प्रसंग: महाभारत के युद्ध के अंतिम दिन की पृष्ठभूमि में रचा गया है, जो युद्ध की विभीषिका और उसके प्रभावों को दर्शाता है।
पात्र/विषय: धृतराष्ट्र, गांधारी, अश्वत्थामा, कृष्ण, युयुत्सु जैसे पात्र नैतिकता, अंधता और प्रतिशोध के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं।
लेखन शैली: धर्मवीर भारती की लेखन शैली गहरी, प्रतीकात्मक और दार्शनिक है। उन्होंने पौराणिक कथानक को आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।
चरित्र विकास: हर पात्र गहरे भावों और नैतिक संघर्षों से जूझता है। अश्वत्थामा के प्रतिशोध और गांधारी के श्राप के माध्यम से चरित्रों की जटिलता को दर्शाया गया है
कथानक संरचना/व्यावहारिक उपयोगिता: नाटक की संरचना बहुस्तरीय है और इसे रंगमंच पर प्रदर्शित करने के लिए आदर्श बनाया गया है। संवाद और प्रतीकों का प्रयोग इसे प्रभावशाली बनाता है।
विषय और संदेश: पुस्तक नैतिकता, हिंसा और प्रतिशोध के दुष्परिणामों को दर्शाती है। यह युद्ध की निरर्थकता और अंधे विश्वास के परिणामों पर प्रकाश डालती है।
भावनात्मक प्रभाव: यह पुस्तक गहरे भावनात्मक और दार्शनिक प्रश्न उठाती है, जो पाठक को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है।शक्ति और दुर्बलता
शक्ति: गहरी दार्शनिकता, पात्रों का उत्कृष्ट चित्रण, प्रतीकों का प्रयोग और सांस्कृतिक महत्त्व।
दुर्बलता: कुछ पाठकों के लिए भाषा जटिल हो सकती है और कथानक अत्यधिक दार्शनिक प्रतीत हो सकता है।
व्यक्तिगत विचार : मैने इस पुस्तक से गहरी आत्मिक जुड़ाव महसूस किया, क्योंकि यह नैतिकता और आत्मबोध जैसे सार्वभौमिक विषयों को उठाती है।
प्रासंगिकता: यह नाटक आज भी समाज में नैतिक पतन, हिंसा और प्रतिशोध के दुष्परिणामों को दर्शाने में प्रासंगिक है।
निष्कर्ष: सिफारिश: यह पुस्तक उन पाठकों के लिए अत्यंत उपयुक्त है जो भारतीय पौराणिक कथाओं, दार्शनिक नाटकों और नैतिकता पर गहराई से विचार करना चाहते हैं।
अंतिम विचार: अंधा युग केवल एक नाटक नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों, नैतिकता और सत्य की खोज का एक दार्शनिक चिंतन है, जो पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करता है।
Book Reviewed by Geeta Premji Parmar, Assistant Professor, MVP’s KSKW, Arts, Science & Commerce, College, Nashik.
अंधा युग एक प्रसिद्ध हिंदी नाटक है, जो 1954 में प्रकाशित हुआ। यह महाभारत के अंतिम दिनों की पृष्ठभूमि पर आधारित है और युद्ध के बाद के नैतिक और आध्यात्मिक पतन को दर्शाता है। यह भारतीय पौराणिक साहित्य का आधुनिक व्याख्यान है।
यह पुस्तक अपनी गहरी दार्शनिकता और सांस्कृतिक प्रतीकों के कारण आकर्षित करती है। महाभारत के चरित्रों के माध्यम से समकालीन समाज की जटिलताओं को समझने का प्रयास किया गया है।
अंधा युग महाभारत के युद्ध के अंतिम दिन पर केंद्रित है, जब कौरवों की पराजय हो चुकी है। धृतराष्ट्र, गांधारी, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और विदुर जैसे पात्रों के माध्यम से नैतिक पतन, अंधत्व और प्रतिशोध की भावना को दर्शाया गया है।विषय: नैतिक पतन, युद्ध के बाद की हानि, अंध विश्वास, प्रतिशोध और आध्यात्मिक अंधकार।प्रसंग: महाभारत के युद्ध के अंतिम दिन की पृष्ठभूमि में रचा गया है, जो युद्ध की विभीषिका और उसके प्रभावों को दर्शाता है।
पात्र/विषय: धृतराष्ट्र, गांधारी, अश्वत्थामा, कृष्ण, युयुत्सु जैसे पात्र नैतिकता, अंधता और प्रतिशोध के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं।
लेखन शैली: धर्मवीर भारती की लेखन शैली गहरी, प्रतीकात्मक और दार्शनिक है। उन्होंने पौराणिक कथानक को आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।
चरित्र विकास: हर पात्र गहरे भावों और नैतिक संघर्षों से जूझता है। अश्वत्थामा के प्रतिशोध और गांधारी के श्राप के माध्यम से चरित्रों की जटिलता को दर्शाया गया है
कथानक संरचना/व्यावहारिक उपयोगिता: नाटक की संरचना बहुस्तरीय है और इसे रंगमंच पर प्रदर्शित करने के लिए आदर्श बनाया गया है। संवाद और प्रतीकों का प्रयोग इसे प्रभावशाली बनाता है।
विषय और संदेश: पुस्तक नैतिकता, हिंसा और प्रतिशोध के दुष्परिणामों को दर्शाती है। यह युद्ध की निरर्थकता और अंधे विश्वास के परिणामों पर प्रकाश डालती है।
भावनात्मक प्रभाव: यह पुस्तक गहरे भावनात्मक और दार्शनिक प्रश्न उठाती है, जो पाठक को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है।शक्ति और दुर्बलता
शक्ति: गहरी दार्शनिकता, पात्रों का उत्कृष्ट चित्रण, प्रतीकों का प्रयोग और सांस्कृतिक महत्त्व।
दुर्बलता: कुछ पाठकों के लिए भाषा जटिल हो सकती है और कथानक अत्यधिक दार्शनिक प्रतीत हो सकता है।
व्यक्तिगत विचार : मैने इस पुस्तक से गहरी आत्मिक जुड़ाव महसूस किया, क्योंकि यह नैतिकता और आत्मबोध जैसे सार्वभौमिक विषयों को उठाती है।
प्रासंगिकता: यह नाटक आज भी समाज में नैतिक पतन, हिंसा और प्रतिशोध के दुष्परिणामों को दर्शाने में प्रासंगिक है।
निष्कर्ष: सिफारिश: यह पुस्तक उन पाठकों के लिए अत्यंत उपयुक्त है जो भारतीय पौराणिक कथाओं, दार्शनिक नाटकों और नैतिकता पर गहराई से विचार करना चाहते हैं।
अंतिम विचार: अंधा युग केवल एक नाटक नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों, नैतिकता और सत्य की खोज का एक दार्शनिक चिंतन है, जो पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करता है।
