डॉ . सारिका भगत श्री पद्ममणि जैन कला व वाणिज्य महाविद्यालय पाबळ, ता. शिरूर, जि.पुणे. प्रस्तुत
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डॉ . सारिका भगत [ सहाय्यक प्राध्यापक ]
श्री पद्ममणि जैन कला व वाणिज्य महाविद्यालय पाबळ,
ता. शिरूर, जि.पुणे.
प्रस्तुत डॉ. राजेंद्र खैरनार द्वारा लिखित ‘इति स्त्री’ उपन्यास में विविध स्त्री पात्रों के माध्यम से स्त्री विमर्श का चित्रण किया हैं | संगमनेर में जनता नगर में रहने वाली गौरी यह वही जनता नगर है जो पहले कभी शहर का बाहरी भाग था उपेक्षित था | लेकिन नजदीक से हाईवे बाईपास गुजर जाने के कारण जनता नगर का भाग्य बदल गया था । गौरी के पिताजी राधाकृष्णजी चीनी मिल में काम करते हैं और माई आचार और पापड़ बनाने का काम करती थी । स्कूल में बाल दिवस पर पहला भाषण देने के बाद उसके साफ सुथरी स्पष्ट आवाज से उसने स्कूल के सभी अध्यापकों का दिल जीत लिया और स्कूल के हर एक कार्यक्रम में भाषण देने लगी। भाषण देने के लिए सातवीं कक्षा तक ही उसने नेहरू, गांधी, अम्बेडकर, चर्चिल, अब्राहमन लिंकन, प्रेमचंद, बाबा आमटे, इंदिरा गांधी, टैगोर, माशेलकर, रतन टाटा आदि नेताओं और समाजसुधारकों की जीवनीयाँ पढ़ी थी।
बुआ का माई को यह कहने पर की ‘‘तुम्हारा भी अपना कोई बच्चा होता’’ यह सुनकर गौरी को बडा झटका लगा और फिर उसका माता पिता को खोजना और से और गहरा होने लगा | गौरी के दिमाग में बवंड़र उठा था | दत्तक है या नहीं यह जान लेने के लिए सर्वे किया | ब्लड ग्रुप देखा | कई बार असफल होणे के बाद भी वह रुकती नहीं मन को समझाती है और खोज को आगे बढाती हैं |
उपन्यास की नायिका गौरी अपनी जन्म देने वाली माँ को खोजने की राह में अनेक स्त्रियों के जीवन से गुजरती है, जो पुरुष हवस का शिकार होकर भी न्याय की गुहार नहीं लगा पायी | कोई अकेली है, कोई छिपकर रहती है तो किसी ने भय से नाम बदल लिया है|
इति स्त्री उपन्यास गौरी के स्वाभिमानी जीवन का और स्त्री संघर्ष का है | उपन्यास में केवल गौरी का स्त्री विमर्श नहीं है तो गौरी के साथ देवयानी, माई, शशिकला, कावेरी, जमुना आजी, रीया, आयशा आदि नारी पात्रों का स्त्री जीवन विविध संघर्षों से जुझता हुआ दिखाई देता है । संपूर्ण उपन्यास में गौरी का व्यक्तित्व विशेष रूप से झलकता है| इति स्त्री रचना में स्त्री जीवन के दुश्चक्र से लडती हुई नाईका के माध्यम से नई दुनिया बनने का सपना देखती भी है, दिखाती भी है |
उपन्यास की गौरी अपनी माँ की तलाश में है और यह तलाश करते समय उसके सामने आनेवाले अलग-अलग प्रसंगो का वह सामना करती है | बचपन से ही गौरी में समझ है स्वाभिमान है और प्रतिकार करने की शक्ती है | वह हर एक मुश्किल का सामना करने वाली लड़की है ।
नौवी का वर्ष गौरी के जीवन में भयानक भूचाल लेकर आया | पंकज सिंह हि गौरी के पिता है यह डी एन ए रिपोर्ट से तय हुआ | राधाकृष्ण जी और माई बहुत दुखी हुए उन्हें गौरी को बताना बडा मुश्कील हुआ| गौरी दुखी थी क्योंकि माई आण्णा को छोडकर उसे जाना था | और माँ मिलनेवाली है इस बात की ख़ुशी भी थी | कितनी भी ऐशो आराम की जिंदगी मिल जाये साथ में अगर माँ का साया नहीं है तो उसका कोई महत्त्व नही होता | पंकज सिंह के घर गौरी को माँ की कमी सताने लगी | वह हरदम माँ को खोजती रहती ना नौकर उसे कुछ बताते न पंकज सिंह उसे कुछ बताते |
हैद्राबाद में शशिकला से मुलाकात होने के बाद उसकी माँ की खोज पूर्ण हुई| और उसने शशिकला पर हुए अत्याचार का प्रतिशोध लेने का ठाण लिया | गौरी की आस्था फलित होती है अपने पिता पंकज सिंह को जेल में भेजकर |
बचपन से उसने पड़ोसीयों के मुख से सुना था ‘‘गौरी तुझे तो माईने दूध भी नहीं पिलाया है ’’’ इस वाक्य से शुरू हुआ यह सफर ‘‘मैं तो खुश हूँ ही, बहुत ज्यादा | मुझे मेरी माँ मिली , माई मिली , मौसी मिली |”’ तक गौरी का सफर ‘गौरी शशिकला आशादेवी’ तक नारीयों का शक्ती स्वरूप स्त्री रूप बन जाता है | गौरी के जीवन का एक नया आरंभ होता है|
उपन्यास को पढते समय कहीं पर भी मन नहीं होता कि उपन्यास को हात से नीचे रख दे | गौरी का जीवन पढ़ते समय मन में अलग अलग सवाल खडे होते है | तर्क लगाना शुरू हो जाता है | निश्चित रूप से पाठक तल्लीन होता है| यह उपन्यास पुरुष रचनाकार का होणे के बावजूद यह स्त्री विमर्श का सशक्त उपन्यास महसूस होता है | ‘इति स्त्री’ स्त्री विमर्श से परिपूर्ण, सीधी, सरल भाषा में लिखा अत्यंत सुंदर उपन्यास हैं | इति स्त्री उपन्यास पर लिखते हुए प्रो. शशिकला राय कहती हैं ‘‘उपन्यास सभी स्तरों पर मानवाधिकारों की समझ को विकसित करने की संवेदनशील पहल करता हुआ दिखाई देता है | नि:संदेह उपन्यासकार का यह प्रयास सराहनीय एवं स्वागत योग्य है | ”
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