Reviewer Name : Deore Tushar Himmat ( FY B PHARMACY) Dr. Vithalrao Vikhe Patil Foundation's College of Pharmacy, Ahilyanagar The Psychology of Money by Morgan Housel Morgan Housel’s The Psychology of Money provides a unique and insightful look
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Reviewer Name : Deore Tushar Himmat ( FY B PHARMACY)
Dr. Vithalrao Vikhe Patil Foundation’s College of Pharmacy, Ahilyanagar
The Psychology of Money by Morgan Housel
Morgan Housel’s The Psychology of Money provides a unique and
insightful look into the intricacies of how people relate to money by
seeking to understand the underlying psychological aspects behind
financial decisions. This book is not merely focused on acquiring wealth
or investment tactics, but a serious consideration on how emotions,
biases, and life experiences influence an individual’s financial actions on
a personal level.
~Key Thoughts.
• Money is Emotional, Not Logical
Housel asserts that logical thinking is highly uncommon when engaging
in a financial decision. Such decisions tend to rely heavily on an
individual’s personal context, such as their background, family, and
social environment. Housel also dismantles the idea that sheer
intelligence will be sufficient to beat the market, pointing to the fact that
behavioral strategy is far more important than theoretical knowledge
alone.
• Luck and Risk Inhere in Every Action
The book has abundant illustrations as to how achieving success in
financial-related issues for most of the time requires both luck and
subsequent actions. Nevertheless, in some cases, failure can also be
attributed to the risks that were taken but didn’t work. Housel reminds
his audience that life is so unpredictable that it is powerfully sustaining
to be modest and circumspect.
• Every Win Requires Time
The book repeatedly refers to compounding. Theo explains the graph
how challenging patience can amplify wealth alongside long term
thinking. One of his key remarks is that investing is all about being ready
for a longer time horizon, rather than trying to spot instant payoffs in five
to ten years.
• Defining Wealth Personally
One of the standout insights is the distinction between wealth and riches.
Housel redefines wealth as the ability to control time and live life on
your own terms, rather than simply accumulating material possessions or
external validation.
• Avoiding Comparison
Comparing yourself to others is a financial trap. Housel advises focusing
on your own goals and circumstances rather than competing with others,
as this can lead to unnecessary risks or dissatisfaction.
• Save More, Spend Thoughtfully
The book advocates for financial resilience by living below your means
and saving not just for specific goals but also for flexibility and
unexpected challenges.
• Strengths
– Relatable Storytelling: Housel uses anecdotes, personal stories, and
historical examples to make abstract financial concepts relatable and
engaging.
– Psychological Depth: The book’s focus on behavior over spreadsheets
makes it accessible to a broad audience, including those without a
financial background.
– Timeless Wisdom: Unlike many finance books that are heavily tied to
current market conditions, this book offers principles that remain
relevant over time.
• Criticisms
– Lack of Technical Detail: Readers looking for detailed investment
strategies or market analysis might find the book lacking in actionable
advice.
– Repetition of Ideas: Some concepts are repeated throughout the book,
which can feel redundant to certain readers.
• Who Should Read This Book?
– Beginners who want an approachable introduction to financial literacy.
– Anyone interested in understanding the psychological aspects of money
management.
– Readers who prefer big-picture financial principles over technical
advice.
• Final Thoughts
The Psychology of Money is a must-read for anyone seeking a deeper
understanding of how emotions and behavior impact financial success.
Housel’s ability to blend psychology with personal finance creates a
compelling narrative that resonates with both novice and experienced
readers. It’s a book that encourages introspection, helping readers align
their financial habits with their values and goals.
Thank you
Deore Tushar Himmat ( FY B PHARMACY)
Saikh Jishan Muktar , Sinhgad Academy of Engineering, Kondhwa bk. Pune
द साइकॉलजी ऑफ मनी” – मोर्गन हाउज़ल द्वारा
मोर्गन हाउज़ल की लिखी हुई किताब “द साइकॉलजी ऑफ मनी” एक ऐसी मास्टरपीस है जो
पैसा, वित्तीय निर्णय और इंसानी व्यवहार के बीच के गहरे संबंध को एक्सप्लोर करती है। यह
किताब एक सरल लेकिन गहन कॉन्सेप्ट पर आधारित है: पैसे को समझने के लिए मैथ्स या
इकोनॉमिक्स की थ्योरी से ज्यादा जरूरत इंसानी नेचर को समझने की है।
हाउज़ल ने अपनी इस किताब में 20 शॉर्ट स्टोरीज के जरिए फाइनेंस और इन्वेस्टिंग के ऐसे
पहलुओं को समझाया है जो अक्सर ओवरलुक किए जाते हैं। ये स्टोरीज रियल-लाइफ
एक्सपीरियंस और एनकडोट्स के माध्यम से बताती हैं कि कैसे लोग अपने वित्तीय निर्णय लेते
हैं और कैसे इन निर्णयों में लॉजिक से ज्यादा इमोशंस, बायस और व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों
का प्रभाव होता है।
एक प्रमुख अवधारणा जो हाउसले चर्चा करते हैं वह है “भाग्य और जोखिम”। उन्होंने बताया
कि वित्तीय सफलता में सिर्फ मेहनत नहीं, बल्कि किस्मत का भी बहुत बड़ा रोल होता है।
लेकिन, लोग अक्सर अपनी सफलता का पूरा श्रेय खुद लेते हैं और दूसरों की सफलता को
किस्मत का नाम देते हैं। इसी तरह, वह हमें यह भी समझाते हैं कि जोखिम लेना ज़रूरी है,
लेकिन उसका अंदाज़ा लगाना और उससे बचने की तैयारी भी उतनी ही ज़रूरी है।
एक और दिलचस्प विचार जो मुझे बहुत आकर्षक लगा, वह था “बचत का महत्व”। हाउसले
कहते हैं कि लोग अक्सर बचत को कम आंकते हैं, लेकिन धन बनाने का सबसे आसान और
प्रभावशाली तरीका है अपनी आय का एक हिस्सा बचाना। यहाँ, उन्होंने यह बिंदु किया कि
बचत काफी हद तक स्वतंत्रता और लचीलापन का दूसरा नाम है। जब आपके पास बचत होती
है, तब आपके पास निर्णय लेने की आज़ादी और गलतियों को सुधारने का समय होता है।
हॉसल के इनसाइट्स पैसा कमाने से ज्यादा उसे संभालने पर फोकस करते हैं। एक और
कॉन्सेप्ट जो मुझे resonate किया वो है “काफी” का आइडिया। इंसान की लालच कभी खत्म
नहीं होती, और अक्सर लोग अपने लिए क्या “काफी” है, इस बात को डिफाइन नहीं करते।
इस चक्कर में वो ज्यादा पैसा कमाने की कोशिश में अपनी हेल्थ, रिलेशनशिप्स और पीस को
दांव पर लगा देते हैं। हॉसल समझाते हैं कि “कब रुकना है” इस सवाल का जवाब ढूंढना उतना
ही जरूरी है जितना कि पैसा कमाना।
उन्होंने एक और प्रैक्टिकल एडवाइस दी जो मुझे बहुत रिलेटेबल लगी: “लॉन्ग-टर्म थिंकिंग”।
इन्वेस्टिंग और फाइनेंशियल डिसीजन लेने में शॉर्ट-टर्म डिस्ट्रैक्शंस से बचा जाए और अपनी
डिसीजन को लॉन्ग-टर्म गोल्स से अलाइन किया जाए। अक्सर लोग एक दिन या एक साल की
गेन पर फोकस करते हैं, लेकिन हॉसल कहते हैं कि असली सक्सेस तब आती है जब आप पेशेंस
रखें और कंपाउंड इंटरेस्ट को आपका काम करने दें।
यह किताब एक बहुत ही सरल और संवादात्मक भाषा में लिखी गई है, जिसमें जटिल वित्तीय
अवधारणाओं को सबको समझ में आने वाले रूप में समझाया गया है। मुझे इस किताब का यह
पहलू सबसे ज्यादा पसंद आया कि यह सिर्फ वित्तीय ज्ञान नहीं देती, बल्कि एक मानसिकता
विकसित करने की ओर प्रेरित करती है।
अगर आप एक छात्र हैं, एक पेशेवर हैं या एक रिटायर हैं, इस किताब में हर किसी के लिए कुछ
न कुछ मूल्यवान है। हाउसल का यह संदेश कि “वित्तीय सफलता इस बात पर निर्भर नहीं
करती कि आप कितने स्मार्ट हैं, यह इस बात पर निर्भर करती है कि आप कैसे व्यवहार करते
हैं” हर एक को सोचने पर मजबूर करता है।
आखिर में, “द साइकॉलॉजी ऑफ मनी” एक ऐसी किताब है जो आपके वित्तीय दृष्टिकोण को
बदलने की शक्ति रखती है। यह न केवल पैसा प्रबंधित करने की बातें सिखाती है, बल्कि जीवन
के हर पहलू में संतुलन और माइंडफुलनेस का महत्व समझाती है। अगर आप पैसा और मानव
व्यवहार के बीच की मनोविज्ञान को खोजने चाहते हैं, तो यह किताब एक अनिवार्य पढ़ाई है।
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