लाल टीन की छत

By Nirmal, Varma Nirmal

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‘लाल टीन की छत’ उनकी सृजनात्मक यात्रा का एक प्रस्थान बिन्दु है जिसे उन्होंने उम्र के एक ख़ास समय पर फ़ोकस किया है

Price:  
₹1300
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‘लाल टीन की छत’ उनकी सृजनात्मक यात्रा का एक प्रस्थान बिन्दु है जिसे उन्होंने उम्र के एक ख़ास समय पर फ़ोकस किया है

Original Title

लाल टीन की छत

Publish Date

2025-01-09

Published Year

2025

Total Pages

300

ISBN

978-81-263-1625

Language

Hindi

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लाल टीन की छत

निर्मल का संसार निर्मल मन के लोगों के लिए कठोर हो सकता है और कठोर लोगों को भी पिघला सकता है। एक ऐसी दुनिया,जहाँ वो...Read More

Sujata Narayan Kharad

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निर्मल का संसार निर्मल मन के लोगों के लिए कठोर हो सकता है और कठोर लोगों को भी पिघला सकता है। एक ऐसी दुनिया,जहाँ वो सारी दुनियाएँ हैं, जिन्हें हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में अनदेखा कर देते हैं।‘लाल टीन की छत’ भी निर्मल की एक ऐसी ही कृति है, दुनिया है।
निर्मल वर्मा ने यह उपन्यास १९७० से १९७४ के बीच लिखा था। ये उपन्यास एक लड़की पर केन्द्रित है, जिसका नाम काया है। काया की उम्र बचपन और किशोरावस्था के बीच कहीं झूलती है। न वो अभी ठीक से अपने बचपन से बाहर आ पाई है और न ही अभी उसको किशोरावस्था की ज़रा सी भी भनक है।
निर्मल लिखते हैं — “वे सुखी दिन थे, लेकिन उसे इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। बड़ी उम्र में सुख को पहचाना जाता है- छोटी उम्र का दुःख भूल जाता है- जिस उम्र में काया थी, वहाँ पीड़ा को लाँघकर कब सुख का घेरा शुरू हो जाता था, या ख़ुद एक तरह का सुख पीड़ा में बदल जाता था- यह जानना असम्भव था। वे असम्भव दिन थे।”
सर्दियों के दिन, जब धुन्ध में पहाड़ बेहद हल्के दिखाई देते हैं, मानों बादल कटकर पहाड़ों में तीर रहे हों, तब काया इन शान्त स्तब्ध पहाड़ों में, लंबी छुट्टियों के दिनों में, अपने छोटे भाई के साथ भटकती रहती है। उसको भटक जाने की परवाह नहीं, वो अपनी धुन में बस चलती जाती है, शायद इसलिए उसका नाम काया रखा होगा। पात्र के नाममात्र से ही उसका व्यक्तिव झलकता है, यह निर्मल की कला है।
“नहीं कोई जगह खाली नहीं होती, काया को लगता था, कोई किसी को छोड़कर नहीं जाता।” — काया के लिए जीवन पूरी दुनिया थी, जो पहाड़ों तक सीमित थी। हर इन्सान अपना, और हर वक्त में कुछ नया घटने का विस्मय, नयी चीज़ों की ओर देखने का आकर्षण। जिसमें कोई दुर्भाव नहीं। जो अपने आप में मासूम है, अकेला है, नग्न है।
काया अपनी माँ को बच्चे को जन्म देते हुए छुपकर देखती है। वो बनते–बिगड़ते रिश्तों को देखती हैं, जिसमें एक अलग तरह का आकर्षण है, जिससे शरीर में एक अलग तरह की झुरझुरी होने लगती है। वो अपने पिता को याद करती है, जो सर्दियों के दिनों में काम से दूर चले जाते हैं। लामा, जो उसके बूआ की लड़की है, उसको देख काया हमेशा कुछ सोचती रहती है। कहानी के बाकी पात्र जैसे नौकर मंगतू, बीरू चाचा, मिस जोशुआ,।सभी कहानी को आकार देते हैं और सबका अपना–अपना जीवन उस एक ही पहाड़ पर अपने तरीके से चलता है। अन्त में काया की मौत एक ऐसा हादसा थी, जिसे स्वीकार करना उतना ही दर्दभरा हो सकता है, जितना किसी अपने को असल जीवन में खोना। काया दुबारा उस गिरजे में जाकर जानना चाहती थी कि कौन था वो इंसान, मैं अब जानने लगी हूँ , शायद काया अब बड़ी हो गई है, क्योंंकि शायद कुछ जानना ही किसी को बड़ा कर देता है। किसी दिन पहाड़ों पर जाकर ढूँढ़ लूंगी उसी पुराने गिरजे को और पूछूंगी उसी इंसान को कि काया को क्यों नहीं बचा पाएं? जबकि वो सबके लिए जी रही थी…उसी इंसान से ‘जो कभी सबके लिए मरा था!’
जैसे निर्मल लिखते हैं —
“मैं ईश्वर के पास पहुँचकर उसके परे निकल गई थी।”

लाल टीन की छत

Book Review by Sujata Narayan Kharad (BALLB- IVth Year) Modern Law College निर्मल का संसार निर्मल मन के लोगों के लिए कठोर हो सकता है...Read More

Dr. Sunita Saware Mane

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Book Review by Sujata Narayan Kharad (BALLB- IVth Year) Modern Law College
निर्मल का संसार निर्मल मन के लोगों के लिए कठोर हो सकता है और कठोर लोगों को भी पिघला सकता है। एक ऐसी दुनिया,जहाँ वो सारी दुनियाएँ हैं, जिन्हें हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में अनदेखा कर देते हैं।‘लाल टीन की छत’ भी निर्मल की एक ऐसी ही कृति है, दुनिया है।
निर्मल वर्मा ने यह उपन्यास १९७० से १९७४ के बीच लिखा था। ये उपन्यास एक लड़की पर केन्द्रित है, जिसका नाम काया है। काया की उम्र बचपन और किशोरावस्था के बीच कहीं झूलती है। न वो अभी ठीक से अपने बचपन से बाहर आ पाई है और न ही अभी उसको किशोरावस्था की ज़रा सी भी भनक है।
निर्मल लिखते हैं — “वे सुखी दिन थे, लेकिन उसे इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। बड़ी उम्र में सुख को पहचाना जाता है- छोटी उम्र का दुःख भूल जाता है- जिस उम्र में काया थी, वहाँ पीड़ा को लाँघकर कब सुख का घेरा शुरू हो जाता था, या ख़ुद एक तरह का सुख पीड़ा में बदल जाता था- यह जानना असम्भव था। वे असम्भव दिन थे।”
सर्दियों के दिन, जब धुन्ध में पहाड़ बेहद हल्के दिखाई देते हैं, मानों बादल कटकर पहाड़ों में तीर रहे हों, तब काया इन शान्त स्तब्ध पहाड़ों में, लंबी छुट्टियों के दिनों में, अपने छोटे भाई के साथ भटकती रहती है। उसको भटक जाने की परवाह नहीं, वो अपनी धुन में बस चलती जाती है, शायद इसलिए उसका नाम काया रखा होगा। पात्र के नाममात्र से ही उसका व्यक्तिव झलकता है, यह निर्मल की कला है।
“नहीं कोई जगह खाली नहीं होती, काया को लगता था, कोई किसी को छोड़कर नहीं जाता।” — काया के लिए जीवन पूरी दुनिया थी, जो पहाड़ों तक सीमित थी। हर इन्सान अपना, और हर वक्त में कुछ नया घटने का विस्मय, नयी चीज़ों की ओर देखने का आकर्षण। जिसमें कोई दुर्भाव नहीं। जो अपने आप में मासूम है, अकेला है, नग्न है।
काया अपनी माँ को बच्चे को जन्म देते हुए छुपकर देखती है। वो बनते–बिगड़ते रिश्तों को देखती हैं, जिसमें एक अलग तरह का आकर्षण है, जिससे शरीर में एक अलग तरह की झुरझुरी होने लगती है। वो अपने पिता को याद करती है, जो सर्दियों के दिनों में काम से दूर चले जाते हैं। लामा, जो उसके बूआ की लड़की है, उसको देख काया हमेशा कुछ सोचती रहती है। कहानी के बाकी पात्र जैसे नौकर मंगतू, बीरू चाचा, मिस जोशुआ,।सभी कहानी को आकार देते हैं और सबका अपना–अपना जीवन उस एक ही पहाड़ पर अपने तरीके से चलता है।
अन्त में काया की मौत एक ऐसा हादसा थी, जिसे स्वीकार करना उतना ही दर्दभरा हो सकता है, जितना किसी अपने को असल जीवन में खोना। काया दुबारा उस गिरजे में जाकर जानना चाहती थी कि कौन था वो इंसान, मैं अब जानने लगी हूँ , शायद काया अब बड़ी हो गई है, क्योंंकि शायद कुछ जानना ही किसी को बड़ा कर देता है। किसी दिन पहाड़ों पर जाकर ढूँढ़ लूंगी उसी पुराने गिरजे को और पूछूंगी उसी इंसान को कि काया को क्यों नहीं बचा पाएं? जबकि वो सबके लिए जी रही थी…उसी इंसान से ‘जो कभी सबके लिए मरा था!’
जैसे निर्मल लिखते हैं —
“मैं ईश्वर के पास पहुँचकर उसके परे निकल गई थी।”

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