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सपनों की ऊचांईयों को खुद तय करना सीखाती है “अग्नि की उड़ान”।
“अगर तुम सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो पहले सूरज की तरह जलो।”
डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलामकी आत्मकथा का नाम “अग्नि की उड़ान” बिल्कुल सटीक ही रखा गया है। अखबार बेचने से लेकर साइंसटिस्ट बनने तक का सफ़र आसान नहीं था। अब्दुल कलाम से मिसाइल मैन बनना सचमुच “अग्नि की उड़ान” ही रही। हमें कभी भी जीवन में परेशानियों से घबराना नहीं चाहिए और ना ही घबराकर अपने कदम पीछे हटाने चाहिए। हमें हर हालात का डटकर सामना करना चाहिए, अपने तय किए लक्ष्य की ओर बिना रूके बिना थके आगे बढ़ते रहना चाहिए। ‘अग्नि की उड़ान’ हमे सपने देखने के लिए प्रेरित करती है,साथ ही उन सपनों को पूरा करने का जज्बा भी अपने अंदर भरती है।
“सपने वो नहीं जो नींद में आए, सपने वो जो नींद न आने दे।”
देश के मिसाइल मैन डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने करोड़ों हिंदुस्तानियों को सपनों का असल मतलब समझाया और उनके जीवन पर लिखी गई किताब“अग्नि की उड़ान” सपनों को जीना और उसे सच करना सिखाती है।अग्नि की उड़ान यह (Wings of Fire) इस किताब का हिंदी अनुवाद है।
जिसके लेखक अरूण तिवारी है। किताब में अब्दुल कलाम के संघर्षों से लेकर मिसाइल की दुनिया में भारत की तरक्की तक सबकुछ बयां किया गया है।
“अग्नि की उड़ान” ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की जिंदगी के तमाम पहलुओं पर रोशनी डालती है साथ ही इस किताब में अब्दुल कलाम के जीवन के वैज्ञानिक और अंतरिक्ष संबंधी चुनौतियां के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी गई है। ये किताब सभी युवाओं को अपने सपनों को पूरा करने लिए लड़ने का जज्बा सिखाती है, साथ ही जीवन में आए सभी बाधाओं को पार करने की प्रेरणा भी देती है। इस किताब को पढ़कर आप समझ पाएंगे कि तमिलनाडू के एक गरीब परिवार के जन्मा अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम, भारत रत्न डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम कैसे बनें। यह किताब अपने सपने को साकार करने के साथ-साथ एक बेहतर इंसान बनने के लिए भी प्रेरित करती है।
लेखक ने किताब में सबसे पहले अब्दुल कलाम के बचपन और पारिवारिक स्थिति के बारे में बताया है। अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था। डॉ. अब्दुल कलाम ने लगभग 4 दशकों तक वैज्ञानिक के रूप में काम किया। ISRO और DRDO में योगदान देने के लिए 1981 में भारत सरकार द्वारा डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 1990 में डॉ. कलाम को पदम विभूषण से नवाजा गया। साल 1997 में कलाम साहब को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया।
अब्दुल कलाम ने भारत को मिसाइल संपन्न देश के रूप में आंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाई है। यही वजह है कि वो साल 2002 से 2007 तक भारत के सर्वोच्च पद पर बतौर प्रथम नागरिक भारत के राष्ट्रपति रहे। बेहद दिलचस्प और गौरतलब बात है कि आजाद भारत के इतिहास में कलाम साहब देश के ऐसे पहले राष्ट्रपति बनें, जो राजनीतिक पृष्ठभूमि से नहीं आते।
कलाम के पिता का नाम जैनुलाब्दीन था और माँ का नाम आशियम्मा था।
अब्दुल कलाम के पिता अक्सर एक बात कहते थे….“जब आफ़त आए तो आफ़त की वजह समझने की कोशिश करो। मुश्किल हमेशा खुद को परखने का मौका देती है।”
डॉ. कलाम को बचपन में ही अपने हालात से लड़ने का सबक मिल चुका था। उन्होंने कभी हार नहीं मानी, बल्कि हर मुश्किल हालात कर डटकर सामना किया और उससे सबक लेकर आगे बढ़ते रहें।
“इंसानों को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्यों कि सफलता का आंनद उठाने के लिए ये ज़रूरी हैं।”
लेखक बताते है की कलाम ने बचपन में ही मेहनत करके कमाना शुरू कर दिया था। 1939 में महज 8 साल की उम्र से ही कलाम अखबार बेचने लगे थे। उनके चचेरे भाई शमसुद्दीन उनकी पहली आमदनी का कारण बनें। सन 1950 में डॉ. अब्दुल कलाम ने इंटरमीडिएट पढ़ने के लिए त्रिचीके सेंट जोसेफ कॉलेज में दाखिला लिया। वहासे उन्होंने बीएससी पास की।
उसके बाद बहुत ही मुश्किलों से मद्रास इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी में अपना दाखिला करवाया। लेकिन यहां की फीस बहुत महंगी थी, जिस वजह से कलाम की मां को अपने सोने के कड़े और चेन बेचने पड़े।
कलाम कहते हैं… “उन्हें ऐसा कोई गुमान नहीं कि मेरी जिंदगी सबके लिए एक मिसाल बने। मगर यह हो सकता है कि कोई मायूस बच्चा हो तो इस किताब से हौसला जरूर मिले… जब वह मायूस बच्चा मेरे इस किताब को पढ़े… तो उसकी उम्मीद को रोशनी मिले। जिसे वह मजबूरी समझता हो, वह मजबूरी ना लगे। उन्हें यकीन रहे कि वो जहां भी है खुदा उनके साथ है। काश हर हिंदुस्तानी के दिल में जलती हुई लौ काम पर लग जाए और उस लौ की परवाज से सारा आसमां रोशन हो जाएं”……
डॉ. अब्दुल कलाम जीवन में अपने सपनों को साकार करने के लिए चार बुनियादी पहलुओं को जरुरी मानते हैं। लक्ष्य निर्धारण करना, हमेशा सकारात्मक सोच रखना, मन में स्पष्ट कल्पना करना और उसपर विश्वास करना। जीवन में आप इन चार मूलमंत्र को अपनाकर हर विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकल सकते है और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। “अग्नि की उड़ान” पुस्तक इन्हीं मूलमंत्रों को अपने जीवन में उतारना सीखाती है क्यों कि कलाम साहब ने कहा था…
“इंतजार करने वाले को उतना ही मिलता हैं, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं।”
अंत मैं कलाम जी की 2002 मैं लिखी हुई अंग्रेजी कविता का हिंदी अनुवाद……

ज्ञान का दीप जलाए रखूंगा……

‘ हे भारतीय युवक
ज्ञानी- विज्ञानी
मानवता के प्रेमी
संकीर्ण तुच्छ लक्ष्य
की लालसा पाप है।
मेरे सपने बड़े
मैं मेहनत करूँगा
मेरा देश महान् हो
धनवान् हो ,गुणवान् हो
यह प्रेरणा का भाव अमूल्य है,
कहीं भी धरती पर,
उससे ऊपर या नीचे
दीप जलाए रखूँगा
जिससे मेरा देश महान् हो ।

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