Share

पुस्तक परीक्षण – डॉ. साहेबराव गायकवाड (उप-प्राचार्य तथा विभागप्रमुख, हिंदी विभाग)
डॉ.नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘आमचा बाप आन् आम्ही’ सन 1993 में ग्रंथाली प्रकाशन से मराठी भाषा में प्रकाशित हुई उत्कृष्ट आत्मकथा विधा है। जो अत्यंत लोकप्रिय हुई। इस पुस्तक की पृष्ठ संख्या २८९ है। तत्पश्यात अंग्रेजी, फ्रेंच तथा स्पेनिश विदेशी भाषाओं में तथा गुजराती,तमिल,कन्नड,उर्दू और पंजाबी जैसे भारतीय भाषाओं में भी इसका अनुवाद प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत आत्मकथा में जाधव परिवार की संघर्ष गाथा है। बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि जाधव परिवार की तीन पीढियों का इतिहास वर्णित है। सन् 1948 तक का इतिहास नरेंद्र जाधव के पिताजी दामोदर जाधव ने लिखा है, और उनके देहावसान के बाद लेखक नरेंद्र जाधव अपने स्वयं का संघर्षमय जीवन प्रवास का रेखांकन किया है। परंतु सही आलोचनात्मक या समीक्षात्मक दृष्टिकोण से देखा जाये तो इस आत्मकथा का नायक लेखक नरेंद्र जाधव न होकर उनके पिता दामोदर जाधव है और नायिका लेखक की माँ सोनूबाई जाधव है। इन लोगों ने जो भोगा, जो सहा है वह नरेंद्र जाधव या उनके भाइयों ने नहीं। इस आत्मकथा में नरेंद्र जाधव के पिताजी दामोदर जाधव,माँ सोनूबाई जाधव तथा स्वयं नरेंद्र जाधव का आत्मकथन प्रमुख है। दामोदर जाधव ने अपने जीवन के प्रारंभिक 10 साल अपने गांव ओझर में बिताये और बाकी जिंदगी मुंबई के वडाला इलाके में। दामू का चचेरा भाई माधव गाँव की ऊँची जाति की स्त्री के साथ अनैतिक सबंध रखने कारण उसे बुरी तरह पीटा गया। माधव मुंबई चला गया। कुछ हप्तों बाद समाचार मिला कि माधव मुंबई में मुश्किलों में है। उसकी सहायता के लिए माँ राहीबाई अपने बेटे दामू व बेटी नाजुका को साथ लिए बगैर टिकट मुंबई गये। तब दामू बारह साल का था। मुंबई में रहने की समस्या थी। रात सोने के लिए जगह नहीं मिलती। दामू प्लेटफार्म पर सोता। माँ ने घास छाटने और क्यारियाँ साफ करने का काम खोज लिया था। दामू कभी-कभी नाजुका को अकेले छोड़कर स्टेशन पर भिखारियों के साथ खेलने चला जाता। धीरे-धीरे उम्र के साथ दामू का संघर्ष आरंभ हुआ। नरेंद्र जाधव की माँ सोनाबाई बहादूर पति की बहादूर पत्नी थी। उसका विद्रोही व्यक्तित्त्व इस आत्मकथा में झलकता है। सोनाबाई के बयान से यह स्पष्ट होता है कि उसपर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरजी के विचारों का प्रभाव था। वह निरक्षर थी परंतु समझदार थी। वह देहाती थी। वास्तव में लेखक डॉ. नरेंद्र जाधव ने अपनी माँ सोनाबाई के बहुआयामी व्यक्तित्व का परिचय करा दिया है। एक सामान्य स्त्री की तरह जीवन यापन करनेवाली स्त्री सोनू ने कभी गर्व नहीं किया कि उसका बेटा कलेक्टर है। हाँ वह जरूर कहती थी कि वह कलेक्टर की माँ है। लेखक डॉ.नरेंद्र जाधव बचपन से ही पढ़ाकू थे। अत्यंत प्रतिकूल स्थिति में पढ़ रहे थे। कभी-कभी लेखक चाली के बालकनी में लटके रहे बिजली के बल्ब के नीचे बैठकर पढ़ते रहते। वास्तव में जाति प्रथा केवल गांवों में ही नहीं है। शहरों में भी जाति -प्रथा का बीज बोया गया। इसका एहसास लेखक को बचपन मे कदम- कदम पर होता था। लेखक इतने उच्च पदों तक पहुँचे परंतू समाज से उन्हें जातिभेद,छुआछूत का कटू अनुभव प्राप्त हुआ। ‘अछूत’ होने के कारण लेखक की उपेक्षा होती रही। इस जाति व्यवस्था से संघर्ष करते हुए कठोर परिश्रम से एक दलित आज अपनी बौद्धिकता के आधार पर यश,सफलता प्राप्त कर सका। उसका संपूर्ण श्रेय डॉ. बाबासाहेब की प्रेरणा,विचारों को हम दे सकते। इस आत्मकथा का नाय‌क दामोदर रुंजाजी जाधव डॉ.आंबेडकर जी के विचारों से प्रभावित हुए और डॉ. आंबेडकर के विचारों से प्रभावित होकर अपने जीवन को दिशा देने का काम किया। उनकी चौथी पीढ़ी अपूर्वा जाधव का कहना है कि, डॉ.बाबासाहेब के विचारों की मशाल हाथ में लिए वह भी अपने जीवन का मार्ग ढूँढेंगी। समाज द्वारा दी गई बैसाकियों को फेंककर स्वयं प्रकाशित हो जाओ। उचित दिशा को ढूँढों तो यश व सफलता आपकी होगी। ‘आम्ही आन् आमचा बाप’ आत्मकथा हमें यहीं संदेश देती है

Related Posts

कामायनी

Pradeep Bachhav
Shareकामायनी – जयशंकर प्रसाद ‘कामायनी’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित छायावादी युग का सर्वोत्तम और प्रतिनिधि हिंदी महाकाव्य है। इसे छायावाद...
Read More

More Sayali Rajendra

Pradeep Bachhav
Shareसंगमनेर नगरपालिका कला, दा.ज. मालपाणी वाणिज्य आणि ब. ना. सारडा विज्ञान महाविद्यालय (स्वायत्त), संगमनेर जि. अहमदनगर विद्यार्थी – मोरे साईभी...
Read More