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मैंने ‘हिंदू धर्म का दर्शन’ इस किताब को अब तक दोन बार पढा है. और इसमें डॉ. आंबेडकर दूवारा दिए गए तर्की पर बारीकी से विचार किया है। और मै निश्चित रूप से यह कह सकता हू. डॉ. आंबेडकर की सभी रच‌नाओं में से एक यह उत्तम रचना है. जिनमें उन्होंने धर्म, धर्म का दर्शन तथा हिंदू धर्म का दर्शन इसकी तर्कपूर्ण मीमांसा की है. इस किताब के पहले भाग में हमे धर्म तथा धर्मशास्त्र को लेकर जो प्रश्न उपस्थित कि जा सकते. उसके बारे में पता चलता है. जिसमे उन्होने धर्म के स्वरूप, उसकी रचना एवं उसमें हुई प्राचीन से आधुनिक युग तक की क्रांतियो का विचारपूर्वक विवेचन किया है.
दुसरे भाग में वह धर्म की उपस्थिती तथा उसकी उपयोगिता को लेकर उसके होने का महत्त्व और उसकी एक सामाजिक शक्ती के रूप में क्रियाशीलता एवं सृजन का आधार बताते है।
भाग तीन में वह ‘हिंदू धर्म के दर्शन’ पर अपना तुलनात्मक विवेचन देते है, जिसमें वह, हिर धर्म की “न्याय एवं उपयुक्तता” की कसोटी पर परिक्षण करते है। जिसमें उन्होंने हिंदू की कसौटी पर परिक्षा धर्म के मूलभूत सिद्धान्तो की, धर्मशास्त्रों (हिंदू) दूवारा दिए गए विश्लेषनो से तुलना करते हुए उसकी नैतिकता का खंडन करते हुए नजर आते है.
भाग चार एवं पाच में उन्होंने, हिंदू धर्म की, आधुनिक मुल्यों के साथ तुलना करते हुए उसके मौलिकता एवं पवित्रता पर प्रश्न उपस्थित किए है. जो अंत मे एक कमकुवत दर्शन के रूप मे दिखाई देता है. जिसका आधार सभी प्रकार की असमानता है, उनके अनुसार ‘हिंदू धर्म का की दर्शन असमानता का दुसरा नाम है.

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